गले और मुंह का कैंसर: गुटका और पान मसालों पर प्रतिबंध कितना प्रभावी


-प्रतिवर्ष दस लाख से अधिक मुख और गले के कैंसर रोगी आ रहे सामने
-स्मोकिंग फैशन आईकान बनने से मुंह के रोगियों की सख्यां अधिक
-मुंह और गले के कैंसर रोगी दुनियां में सबसे अधिक भारत में
 देशभर में प्रतिवर्ष दस लाख से अधिक मुख और गले के कैंसर रोगी सामने आ रहे है, और जिनमें से 5० प्रतिशत की मौत बीमारी की पहचान के अंतराल में ही हो जाती है। इसमें युवा अवस्था में होने वाली मौतों का कारण भी मुंह व गले का कैंसर मुख्य है। हालांकि पूरी दुनिया में विश्व गला व सिर कैंसर दिवस मनाए जाने और जागरुकता के तमाम कवायद के बाद भी कैंसर की महामारी रुकने का नाम नहीं ले रही है। पिछले 16 सालों में मुख और गले के कैंसर रोगियों की संख्या पुरुषों और महिलाओं में तीव्र गति से बढ़ती जा रही है। इसका खुलासा एशियन पेसिफिक जर्नल ऑफ कैंसर प्रिवेंशन में जारी रिपोर्ट में हुआ है।
वायसॅ ऑफ टोबेको विक्टिमस और गुड़गांव के फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के निदेशक डॉ वेदांत काबरा कहते हैं कि देशभर में लाखों लोगों में देरी से इस बीमारी की पहचान, अपर्याप्त इलाज व अनुपयुक्त पुनर्वास सहित सुविधाओं का भारी अभाव है। करीब 3० साल पहले तक 6० से 7० साल की उम्र में मुंह और गले का कैंसर होता था लेकिन अब यह उम्र कम होकर 3० से 5० साल तक पहुंच गई। वही आजकल 2० से 25 वर्ष के कम उम्र के युवाओं में मुंह व गले का कैंसर देखा जा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण हमारी सभ्यता का पश्चिमीकरण साथ ही युवाअेां में स्मोकिग को फैशन व स्टाइल आइकान मानना है। मुंह के कैंसर के रोगियों की सर्वाधिक संख्या भारत में है।
भारत में पूरे विश्व की तुलाना में धूम्ररहित चबाने वाले तंबाकू उत्पाद (जर्दा,गुटखा,खैनी,) का सेवन सबसे अधिक होता है। यह सस्ता और आसानी से मिलने वाला नशा है। पिछले दो दशकों में इसका प्रयोग अत्यधिक रुप से बढ़ा है, जिस कारण भी हैड नेक कैंसर के रोगी बढ़े है। डा.काबरा बतातें है कि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिर्सच द्बारा वर्ष 2००8 में प्रकाशित अनुमान के मुताबिक भारत में हैड नेक कैंसर के मामलों में वृद्बि देखी जा रही है। कैंसर में इन मामलों में नब्बे फीसदी तम्बाकू, मदिरा व सुपारी के सेवन से होतें है और इस प्रकार के कैंसर की रोकथाम की जा सकती है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान (आईसीएमआर) की रिपोर्ट मंे भी इस बात का खुलासा किया गया है कि पुरुषों में 5० फीसदी और महिलाओं में 25 फीसदी कैंसर की वजह तम्बाकू है। इनमें से 6० फीसदी मुंह के कैंसर हैं। धुआं रहित तम्बाकू में 3००० से अधिक रासायनिक यौगिक हैं, इनमें से 29 रसायन कैंसर पैदा कर सकते हैं।
उन्होने कहा कि हैड नेक कैंसर के मामले राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजनाओं, वंचित लोगों, परिवारों व समुदायों पर भार बढ़ा रहे हैं। भाग्यवश हैड नेक कैंसर से जुडे अधिकांश, मामलों में यदि बीमारी का पता पहले लग जाये तो इसे रोका जा सकता है और ईलाज भी किया जा सकता है। लेकिन लाखों लाखों लोग रोग की देरी से पहचान, अपर्याप्त ईलाज व अनुपयुक्त पुनवर्वास सुविधाओं के शिकार हो जाते है।
टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के प्राचार्य और सर्जन डा. पंकज चतुर्वेदी जो इस अभियान की अगुवाई वैश्विक स्तर पर कर रहे है। वह बताते हैं कि हैड नेक कैंसर के नियंत्रण के लिये सरकारों, एनजीओ, चिकित्सा व स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, सामाजिक संगठनों, शिक्षा व उद्योग संस्थानों सहित बहु क्षेत्रिय सहयोग की आवश्यकता है। हैड नेक कैंसर पर प्रभावी नियंत्रण और ईलाज की और वैश्विक ध्यान आकर्षित करने के लिये अंतरर्राटàीय फेडरेशन ऑफ हेड एण्ड नेक ऑनोलोजिक सोसाईटिज आईएफएचएनओएस ने जुलाई 27 को विश्व सिर, गला कैंसर दिवस -डब्ल्यु एचएनसीडी- के रूप में मनाये जाने का प्रस्ताव रखा है। फेडरेशन को इसके लिये अनेक सरकारी संस्थानों, एनजीओ, 55 से अधिक सिर व गला कैंसर संस्थानों व 51 देशों का समर्थन प्राप्त है।
डा.पंकज चतुर्वेदी बतातें है कि एशियन पेसिफिक जर्नल ऑफ कैंसर प्रिवेंशन 2००8 व 2०16 में प्रकाशित शोध पत्र के अनुसार 2००1 में पुरुषों में मंुंह का कैंसर के 42725 मामले वहीं 2०16 में 652०5 मामले, महिलाअेां में 22०8० व 35०88, गले और श्वास नली के कैंसर के मामले 49331, 759०1, महिलाअेां में 9251, 1455०, भोजन नली 24936 व 38536 महिलाओं में 17511व 28165, अमाशय में 2०537 व 31538, महिलाओं में 11162 व 17699, फैंफड़े 39262 व 6०73०, महिलाओं में 9525 व 15191, स्तन कैंसर महिलाओं में 89914 व 14०975, गर्भाश्य महिलाओं में 79827 व 125821 तथा अन्य तरह के 214967 व 31584० तथा महिलाअेां में 166629 व 25241० रोगी पाए गए।
देश में अनेक परेशानियों के बावजूद, हालांकि गुटखे पर, जो की एक धुंआ रहित औद्योगिक उत्पाद है, पर लगभग पूरे भारत पर प्रतिबंध लग गया है। गुटखे के अलावा, 13 राज्यों ने अब उत्पादित सुगंधयुक्त चबाने वाले तम्बाकु को भी निषेध कर दिया है। तम्बाकु पीडिèतों की आवाज नामक तम्बाकू पीडिèतों के स्वयं के द्बारा चलाये गये निरंतर आंदोलन के परिणामस्वरूप यह प्रतिबंध प्रभाव में आया। इस आंदोलन से देश के नामी कैंसर विशेषज्ञ भी जुड़ गये।
वर्ष 2०14 में जॉन हॉपकिस यूनिर्वसिटी ब्लूूमबर्ज स्कूल ऑफ पब्लिक हैल्थ व विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गुटखा प्रतिबंध के प्रभावों पर एक अध्ययन करवाया। अध्ययन के दौरान देश के सात राज्यों असम, बिहार, गुजरात, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट, उड़ीसा और दिल्ली में 1,००1 वर्तमान व पूर्व गुटखा उपभोक्ताओं और 458 खुदरा तम्बाकु उत्पाद विक्रेताओं पर सर्वे किया गया। इस सर्वे में सामने आया कि 9० फीसदी रिस्पोडेंन्ट्स ने इच्छा जताई कि सरकार को धुंआ रहित तम्बाकु के सभी प्रकार के उत्पादों की बिक्री और डिस्टिब्यूशन पर प्रतिबंध लगा देना चाहिये। इस पर 92 फीसदी लोगों ने प्रतिबंध का समर्थन किया। 99 फीसदी लोगों ने कहा कि भारतीय युवाओं के स्वाथ्य के लिये प्रतिबंध अच्छा है। जो लोग प्रतिबंध के बावजूद गैरकानूनी ढंग से पैकेज्ड तम्बाकु का सेवन करते है उनमें से आधे लोगों ने कहा कि प्रतिबंध के बाद उनके गुटखा सेवन में कमी आई है। 8० फीसदी लोगो ने विश्वास जताया कि प्रतिबंध ने उन्हें गुटखा छोडने के लिये प्रेरित किया है और इनमें से आधे लोगों ने कहा उन्होंने वास्तव में छोड़ने की कोशिश भी की है। इंडेक्स ऑफ इंडिस्टरियल प्रोडक्शन आईआईपी के आंकडो पर गौर करे तो सिगरेट, बीड़ी व चबाने वाले तम्बाकू उत्पादों को उत्पाद मार्च 2०15 में पिछले वर्ष की अपेक्षा 12.1 फीसदी गिर गया।
चबाने वाले तम्बाकु उत्पाद पर प्रतिबंध के प्रभाव यूरोमोनिटर इंटरनेशनल की रिपोर्ट दर्शाती है जिसके मुताबिक धंुआरहित तम्बाकु उत्पाद में निम्न गिरावट देखी गई है - वर्ष 2०11: 2 प्रतिशत 2०12: 26 प्रतिशत 2०13 य 8०: प्रतिशत पूर्वानुमान के मुताबिक यह दर 2०14 मे 4० फीसदी तक और 2०15 में करीब 35 प्रतिशत तक गिर गई। 2०16 तक 3० व 2०18 में 25 फीसदी तक गिर जायेगी।
-मार्कण्डेय पाण्डेय

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