10 लाख 65 हजार भूलेभटकों को मिला चुके हैं राजाराम मकरसंक्रांति से पौष पूर्णिमा तक भूले ग्याहर हजार लोग सर्वाधिक भूलेभटके लोग बिहार और झारखंड के


जब रोते-बिलखते लोगों को देखता था तो मै उनके परिजनांे को खोजना शुरु करता था। उस समय मेला इतना बड़ा नहीं होता था और मेरे पास लाउडस्पीकर भी नहीं था तो डुगडुग्गी बजाकर या टीन के भोपू से चिल्लाकर भूलेभटकों के परिजनों को ढूंढता था। उस समय से लेकर आज तक मैने दस लाख 65 हजार भूलेभटकों को उनके परिजनों से मिलवाया है। जबकि इस वर्ष वह साढे दस हजार लोगों को उनके परिजनों से मिलवा चुके हैं। जिनमे सिर्फ पौष पूर्णिमा को ही चार हजार लोगों का भटकना दर्ज हुआ। यह कहना है 87 वर्षीय राजाराम तिवारी का जो भूलेभटकों को मिलाने के लिये हर साल भूलभटका शिविर लगाते हैं।
प्रतापगढ के गौरा निवासी राजाराम तिवारी हर साल लगने वाले माघ मेले में त्रिवेणी के तट पर अपना आशियाना डाल देते हैं और कल्पवास के साथ ही भूलेभटकों को मिलाने को ही भगवत भजन मानते हैं। वर्ष 1946 से 2013 तक यह उनका पांचवा कुंभ है तो अब तक वे 7 अर्द्धकुंभ और 56 माघमेला में अपनी सेवायें दे चुके हैं। श्री तिवारी बताते हैं कि 1946 में लोगों को रोते-बिलखते देखकर वह और उनके अन्य 12 साथियों ने मिलकर भूलाभटका शिविर लगाना शुरु किया, जो आजतक अनवरत जारी है। यह बताते हुए वह अतीत की यादों में खो जाते हैं और दुखी होकर बताते हैं कि मेरे ज्यादातर साथी अब नहीं रहे।
अतीत की यादों में खोते हुए राजराम तिवारी कहते हैं कि 1954 से पहले पीपे का पुल नहीं होता था, उस समय इस पार से उस पार जाने के लिये नावों को जोड़कर पुल तैयार किया जाता था। 1954 के कुंभ में हुई दुर्घटना को याद करते हुए श्री तिवारी कहते हैं कि उस समय प्रधानमंत्री नेहरु जी का काफिला आ गया था और दूसरी ओर से शाही स्नान के लिये अखाड़े निकल रहे थे, जाम के कारण भगदड़ मच गई और हजारों लोग मारे गये। वे कहते हैं कि मरने वालों में ज्यादतर भीख मांगने वाले थे जिनको अरैल तट पर अंतिम संस्कार किया गया था। इसी दुर्घटना के बाद से यहां पर सरकार की नजर गई और यहां पर सरकारी इंतजाम होने लगे।
आपको कितनी सुविधायें मिलती हैं सवाल के जबाव में कहते हैं कि सरकार की ओर से मुझे वही सुविधाये मिलती है जो आम कल्पवासियों को प्राप्त होती है। जब उनसे सवाल किया गया कि किस उम्र और प्रदेश के लोग ज्यादातर भूलते-भटकते हैं तो श्री राजाराम तिवारी कहते हैं कि ज्यादातर बिहार और झाारखंड के लोग होते हैं उनमें भी महिलायें और बच्चे ही अधिक होते हैं। आजादी के समय के बीए, एलएलबी पास श्री तिवारी कहते हैं कि जिन बच्चों और महिलाओं के परिजन मेला खतम होने के बाद भी नहीं मिलते उनको हम बाल निकेतन भेज देते हैं। जबकि प्रत्येक साल हम सैकड़ों लोगों को उनके घर तक पहुंचाने की भी जिम्मेदारी पूरी करते हैं। उम्र के आठवे दशक को पूरा करने जा रहे श्री तिवारी की इस परंपरा को अब उनके सुपुत्र उमेश चंद्र तिवारी निभाने के लिये अब भूलभटका शिविर में मौजूद रहने लगे हैं।

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