सुप्रीम कोर्ट के बाद एनजीटी ने भी दिया सरकार को झटका

अरावली में भारती एयरटेल और इरोस ग्रुप ने 52 एकड़ जमीन खरीदा था, सात हजार से अधिक पेड़ काटे

अरावली को लेकर सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद प्रदेश सरकार को अब एनजीटी ने झटका दिया है। अरावली के सराय ख्वाजा में भारती एयरटेल ने लक्जीरियस अर्पाटमेंट के निर्माण के लिए सरकार से 52 एकड़ जमीन खरीदी थी जिसे एनजीटी ने डीम्ड फारेस्ट कहते हुए गैरकानूनी करार दिया है। इतना ही नहीं इस जमीन पर छह हजार से अधिक पेड़ों को काटे जाने के लिए एनजीटी ने प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। गत दिनों इस मामले को लेकर एक सेवा निवृत सेना अधिकारी ने न्यायालय में मामला दायर किया था। जिसके बाद राष्ट्रीय हरित न्यायालय ने वन विभाग सहित पर्यावरण व वनमंत्रालय को नोटिस जारी किया था। उल्लेखनीय है कि गत चार दशकों में ही एनसीआर में अरावली 40 फीसद से अधिक विभिन्न कारणों से खत्म की जा चुकी है।
हरियाणा में करीब 50 हजार एकड़ अरावली भूमि को ऐसा माना जाता है कि यह फारेस्ट नोटिफिकेशन में नहीं आने के कारण अरावली से अलग माना जाता है। एनजीटी के इस आदेश के बाद उम्मीद की जा रही है कि अब इस क्षेत्र को भी डीम्ड फारेस्ट क्षेत्र घोषित किया जा सकेगा। यहां तक कि राजस्व रिकार्ड में नहीं होने के कारण गैरमुमकीन पहाड़ कहा जाने वाले क्षेत्र को थाली में परोस कर बिल्डरों को दिया जा रहा है। अरावली का क्षेत्रफल जो 1972-75 तक 10,462 वर्ग किलोमीटर था, अब घटकर महज 6,116 वर्ग किलोमीटर बचा रह गया है। उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने साल 2002 में ही अरावली क्षेत्र में किसी प्रकार के खनन को अवैध करार दे दिया था। 1992 में ही राष्ट्रीय राजधानी प्लानिंग बोर्ड ने अरावली क्षेत्र को पर्यावरण संवेदनशील नोटिफाईड क्षेत्र घोषित कर दिया था। जबकि हरियाणा सरकार ने इसे नोटिफाईड फारेस्ट घोषित करने में लापरवाही किया जिसका परिणाम यह रहा कि राजस्व रिकार्ड में जिसे गैर मुमकिन पहाड़ कहा गया जिसका अर्थ है कि यह भूमि गैर जोत है, वह नोटिफाइड नहीं होने से भूूमाफियाओं ने मनमाना उपयोग करते रहे हैं। उक्त मामले को लेकर सरकार ने राष्ट्रीय हरित न्यायालय में कबूल किया था कि बिल्डर ने 7 हजार पेड़ काटे थे। जिसे बकायदा वन विभाग ने एनजीटी में कबूल किया था। हांलाकि पर्यावरण कार्यकर्ता दावा कर रहे हैं कि पेड़ों की कटाई को स्वीकार तो छह हजार ही किया गया है लेकिन पेड़ और भी अधिक काटे गए हैं। मामला अरावली के 52 एकड़ जमीन का है जो कि  गुडग़ांव-फरीदाबाद से जुड़े अरावली की जमीन सरायख्वाजा इलाके का है। जहां पर भारती बिल्डर ने अपने अपार्टमेंट बनाने के लिए हरियाली को नष्ट कर दिया।  अरावली का यह क्षेत्र गैर मुमकीन पहाड़ माना जाता है। जो कि फारेस्ट नोटिफाईड एरिया के अंर्तगत नहीं आता, जिसका फायदा उठाकर गैर वानिकी गतिविधियों को धडल्ले से किया जा रहा है। भारतीय एयरटेल बिल्डर ने पेड़ों की की अंधाधुध कटाई की जानकारी होने पर सेना के एक सेवानिवृत अधिकारी ने राष्ट्रीय हरित न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
अकबर के समय टोडरमल ने लिखा गैर मुमकीन पहाड़
राजस्व रिकार्ड के अनुसार यह जमीन गैर मुमकीन पहाड़ के अंर्तगत है। अकबर के समय 1560 में ही टोडरमल ने अपने राजस्व रिकार्ड में अरावली क्षेत्र की काूमि को गैरमुमकीन पहाड़ के रुप में दर्ज किया। जहां खेती करना गैरकानूनी है लेकिन इस भूमि पर दबंगों खेती का बहाना करके जमीन कब्जा करना शुरु कर दिया। कुछ समय बाद इसे बिल्डरों को बेच दिया जाता है। यदि इस भूमि को सरकार नोटिफाईड फारेस्ट एरिया घोषित कर देती है तो इससे बिल्डरों को की जाने वाली रजिस्ट्री ही अवैध हो जाएगी।
 लेफ्टिनेंट कर्नल सर्वदमन सिंह ओबेराय
एनजीटी के आदेश का हम स्वागत करते हैं, सबसे अधिक अच्छी बात है कि कोर्ट ने इसे डीम्ड फारेस्ट माना है। सरकार को कड़ी फटकार लगी है, अब अरावली को लेकर खिलवाड़ बंद होनी चाहिए। सरकार इतनी जल्दी में हैं कि इसे बेचकर बिल्डरों सौंप देना चाहती है। हमें न्यायालय पर पूरा भरोसा है यह न्याय और सच्चाई की जीत है, लाखों लोगों की जीत है।
चेतन अग्रवाल, फारेस्ट एनालिस्ट 
यह बहुत बड़ा निर्णय है। 22 साल पहले गोर्वधन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि वन क्षेत्र को चिंहित किया जाए जो नोटिफाइड नहीं किए गए हैं। अब इस फैसले से फिर से गैर नोटिफाईड वन क्षेत्र को नोटिफाईड करने की रास्ता साफ हो जाएगा।

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