प्यास से तड़पकर मरने लगे अरावली के वन्यजीव


नीलगाय, जंगली सुअर की लाशें मिलने लगी सूखे जलस्रोतों के पास 

अरावली की बदहाली का कहर यहां पर रहने वाले वन्यजीवों पर दिखने लगा है। गर्मी के मौसम की शुरुआत होते ही अरावली के भीतर मौजूद छोटे-बड़े जलस्रोत सूखने लगे हैं और वन्यजीव प्यास से तड़पकर मरने लगे हैं। हांलाकि वन्य जीवों के मौत का सिलसिला पिछले साल की गर्मियों में भी हुआ था और वन्य विभाग ने कहा था कि वह अरावली के भीतर मौजूद जल गर्तिकाओं को जलापूर्ति करेगा। मई जून के महीने में यहां पर मौजूद ज्यादातर जलाशय सूख जाते हैं और इसमें पानी डालने का कार्य वन विभाग का होता है। सूखते जलस्रोतो के कारण ही जंगली जानवर खासकर तेंदूआ अक्सर रिहायशी इलाकों का रुख करते हैं। अरावली के अंदर 10 से 15 किलोमीटर की औसत दूरी पर मौजूद जलस्रोतों से पानी पीने के लिए जानवर दूर से दूर से आते हैं, आखिरकार जब पानी नहीं मिलता है तो प्यास से तड़पकर मर जाते हैं।

दूसरी तरफ अरावली के बीच में स्थित बंधवाड़ी गांव और आसपास के इलाकों में भूजल पूरी तरह प्रदूषित और जहरीला हो चुका है। हांलाकि इसकी पुष्टि गत वर्ष केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से भी कर दी गई थी। उसी समय यहां के भूजल के परीक्षण के बाद कहा गया था कि यहां का जल मनुष्य तो क्या जानवरों के भी पीने योग्य नहीं है। जहरीले भूजल का दायरा अब धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है।
किन गावों का पानी हो गया है जहरीला
अरावली की गोद में स्थित ग्वाल पहाड़ी, बालियावास, मंडी और कोट गांवों का भूजल पूरी तरह प्रदूषित हो चुका है। इसकी जांच भी गत दो सालों से नहीं की गई है जबकि लोगों का कहना है कि प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। जबकि ग्वाल पहाड़ी और बलियावास के तकरीबन 15 हजार लोगों के स्वास्थ्य को लेकर किसी को फिक्र नहीं है। तकरीबन 16 हजार टन कूड़ा रोज ही यहां पर जमा किया जा रहा है। जिससे बंधवाड़ी में जहां कूड़े का पहाड़ खड़ा हो गया है तो वहीं इसका विस्तार आसपास के क्षेत्रों में बढ़ता जा रहा है।
लीचेट वाटर से फैल रहा है कैंसर
बंधवाड़ी और आसपास के गांवों के लोगों का कहना है कि कूड़े से रीसकर धरती में जाने वाले लीचेट वाटर भूजल को जहरीला बना रहा है जिससे यहां पर कैंसर जैसी भयानक बिमारी लोगों में फैल रही है। ग्रामीणों का दावा है कि गत पांच सालों में यहां पर सौ से अधिक लोगों को कैंसर डिटेक्ट किया गया है। गत वर्ष केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कहा था कि मांगर, बलियावास, बंधवाड़ी सहित अन्य कई गांवों का पानी जानवरों के पीने के काबिल भी नहीं रह गया है।
वर्जन
कूड़े का सही निस्तारण नहीं किया जा रहा है जिससे पानी जहरीला होता जा रहा है। दूसरी तरफ वन विभाग अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में पूरी तरह नाकाम रहा है। अधिकारियों को न तो वन्यजीवों की चिंता है ना ही वन संपदा की ऐसे में अरावली को लेकर अब जनता को आगे आना होगा।- वैशाली राणा चंद्रा, आरटीआई कार्यकर्ता, पर्यावरण  विशेषज्ञ


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