बीते दशक में एनसीआर दुनिया की प्रदूषण राजधानी बनी

साल 2008-2018 के दौरान लगातार जहरीली हुई एनसीआर की हवा 


 साल 2008 से लेकर 20018 के दौरान राजधानी दिल्ली समेत पूरे एनसीआर की हवा जहरीली होती गई है और यह दुनियां में प्रदूषण की राजधानी बनकर उभरी है। इतना ही नहीं यहां पर प्रदूषण से मौत के मामले भी देश के दूसरे हिस्सों के मुकाबले अब्बल है। प्रदूषण की सबसे बड़ी मार जहां बुजुर्गो पर पड़ रही है तो वहीं पांच साल से छोटे बच्चों से लेकर गर्भवती महिलाएं भी इससे अछूती नहीं है। केंद्रीय भूविज्ञान मंत्रालय के अधीन कार्य करने वाली संस्था सफर इंडिया के सालाना रिर्पोट में प्रदूषण के इन आंकड़ों का खुलासा हुआ है। सेंटर फॉर साईंस एंड एंवायरमेंट (सीएसई)की वार्षिक मीडिया कांक्लेव में दिल्ली-एनसीआर सहित देश के विभिन्न शहरों में वायु गुणवत्ता, प्रदूषण के विभिन्न स्तर व प्रकार, स्वच्छता, सहित भूजल और वन्यजीवों पर आंकड़ों को जारी किया गया है। हांलाकि जारी किए गए रिर्पोट में यह भी कहा गया है कि सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर किए गए प्रयासों के कारण पीएम 2.5 स्तर में मामूली स्तर भी हुआ है।
वर्ष 2008 से लेकर बीते साल 2018 के दौरान दिल्ली और एनसीआर के दूसरे हिस्सों में उद्योगों से होने वाला प्रदूषण तकरीबन 48 फीसद बढ़ा है जिसमें कि नाईट्रोजन के आक्साईड सहित ब्लैक कार्बन के कणों में बढोत्तरी हुई है। राजधानी में जहां साल 2010 में 17 फीसद औद्यौगिक प्रदूषण था वही गत दस सालों में बढकर यह 22 फीसदी हो गया है। परिवहन के क्षेत्र में तमाम कवायदों के बावजूद भी प्रदूषण में इजाफा गत दस सालों में बढक़र 32 से 39 फीसद हो गया है। दिल्ली, गुडग़ांव, नोयडा सहित एनसीआर के दूसरे हिस्सों में तेजी से पसर रही अनाधिकृत कालोनियों में अवैध तरीके से औद्यौगिक गतिविधियों को संचालित किया जा रहा है जिससे प्रदूषण में इजाफा हो रहा है। इतना ही नहीं बीते एक दशक में राजधानी के दूसरे हिस्सों में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को बेहतर और प्रगतिशील करने में भी सरकारें नाकाम रही है तो दूसरी तरफ निजी वाहनों की संख्या में लगातार इजाफा हुआ है।
नाईट्रोजन और सल्फर के आक्साईड है जानलेवा
गुडग़ांव, फरीदाबार सहित पूरे एनसीआर के प्रदूषण के लिए सबसे खतरनाक तत्व नाईट्रोजन और सल्फर के आक्साईड है जो खासकर कोयला आधारित संयत्रों से उत्सर्जित किए जा रहे हैं। दिल्ली और आसपास के इलाके में करीब एक दर्जन कोयला संचालित बिजली उत्पादन केंद्र, कोयला और घटिया स्तर के पेटकोक से संचालित उद्योगों के चलते रोजाना सैकड़ों टन पीएम 10 और पीएम 2.5 जैसे खतरनाक प्रदूषक तत्व हवा में घुलकर हमारी सांसों में जा रहे हैं। प्रदूषण की भयावह स्थिति को देखते हुए गत दिनों केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट ने दिशानिर्देश जारी किया गया था। प्रदूषण नियंत्रण के लिए जिम्मेदार सरकारी संस्थाएं यदि दिशानिर्देशों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करती है तो हालात में काफी सुधार किए जा सकते हैं।
वर्जन
सेंटर फॉर साईंस एंड एनवायरमेंट की तरफ से जुलाई 2018 में और 2019 के शुरुआती दौर में सर्वेक्षण किया गया। सर्वेक्षण के दौरान यह बात सामने आई कि प्रदूषण के नियंत्रण के लिए दिशानिर्देशों के पालन के लिए उद्योग सहित कोयला आधारित संयत्र अभी पूरी तैयारी नहीं दिखा रहे है। -सुनीता नारायणन, सेंटर फार साईंस एंड एनवायरमेंट।
फोटो भी लगा लिजिएगा

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