भूमाफियाओं और बिल्डरों का चारागाह बन जाएगी अरावली

पंजाब भूमि संरक्षण कानून में संशोधन से पसर जाएंगे बिल्डर
खत्म हो जाएगा एनसीआर के भूजल रिचार्ज का सबसे बड़ा स्रोत  
60 हजार एकड़ अरावली खतरे में, 16 हजार एकड़ गुडग़ांव में तो 10 हजार एकड़ फरीदाबाद में इसी माह संशोधित के लिए पीएलपीए को रखा गया है विधानसभा में देशभर में जितनी हरियाली है उसकी तुलना में हरियाणा में 4 फीसद से भी कम बची है। बावजूद इसके राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को आक्सीजन देने और भूमिगत जल को रिचार्ज करने वाली अरावली पर बिल्डरों की नजर है तो सरकार भी इसे लेकर गंभीर नहीं दिखाई देती। पंजाब लैंड प्रिजर्वेशन एक्ट 1900 जिससे अरावली अपनी प्राणवायु हासिल कर जिंदा रही है उसे ही संशोधित करने के लिए सरकार ने विधानसभा में रख दिया है। इस एक्ट के तहत और सुप्रीम कोर्ट के 2002 और 2004 के निर्णय के अनुसार नोटिफाईड एरिया को फारेस्ट एरिया माना जाता है। कोर्ट ने एमसी मेहता केस में भी 2008 व 2009 में इसी बात को दोहराया है। गुडग़ांव जिले में अरावली के 16930 एकड़ भूमि जो कि 38 गांवों के अंतर्गत आती है इसी पंजाब लैंड प्रिजर्वेशन एक्ट के नोटिफिकेश के अंर्तगत तहत आता है। इसीतरह फरीदाबाद जिले में 10445 एकड़ अरावली भूमि 17 गांवों में हैं वह भी इस नोटिफिकेशन के कारण संरक्षित है। इस नोटिफिकेशन की समयावधि अब समाप्त हो चुकी है तो सरकार इसमें संशोधन के लिए विधानसभा में पेश कर चुकी है। पर्यावरण कार्यकर्ता आरोप लगाते हैं कि सरकार इसे बिल्डरों के फायदे के लिए संशोधित कर रही है जबकि इसे बिना संशोधन किए ही लागू किया जाना चाहिए।
इस संशोधन से अरावली क्षेत्र पर संकट खड़ा हो जाएगा और नोटिफाईड एरिया की जमीनें बिल्डरों के लिए आसान शिकार हो जाएंगी। दक्षिण हरियाणा में प्राकृतिक जैवविविधता से भरपूर अरावली के खत्म होते ही वन्यजीवों सहित अनेक प्रकार के पौधे भी विलुप्त हो जाएंगे। एनसीआर में खतरनाक स्तर को पार कर चुके वायु गुणवत्ता की स्थिति की कल्पना किया जा सकता है, यदि अरावली नहीं होती तो हालात किस कदर खराब होते। इतना ही नहीं जहां गुडग़ांव में प्रतिवर्ष पांच फीट भूमिगत जल नीचे जा रहा है वहां पर अरावली ही एकमात्र स्रोत है जो भूजल को रिचार्ज करती है। दक्षिण हरियाणा में अरावली का ज्यादातर हिस्सा पंचायतों के अंर्तगत आता है और 20-30 साल पुराने पंजाब लैंड प्रिजर्वेशन एक्ट 1900 के तहत है।
क्या कहते हैं पर्यावरण कार्यकर्ता
पर्यावरण कार्यकर्ता आरोप लगाते हैं कि इस नोटिफिकेशन को रिन्यू करने की बजाए सरकार इसमें संशोधन करने जा रही है। इसके लिए प्रदेश के मंत्रीमंडल ने इसे पास करके विधानसभा में ले गई है जो गत दो सप्ताह से लंबित है। पर्यावरण कार्यकर्ताओं का आरोप है कि इस संशोधन को लेकर वन विभाग से कोई विचार विमर्श नहीं किया गया है ना ही जनता से कोई राय ली गई है। इसमें संशोधन करके सरकार लागू करती है तो अरावली भूमाफियाओं का चारागाह बन जाएगी। इस संशोधन से बिल्डरों को खुली छूट मिल जाएगी। इसके अलावा बेनामी सम्पत्ति और कालाधन को इन क्षेत्रों में छिपाने का मुफीद अडडा बन जाएगा जहां पर जमीनों और अर्पाटमेंट के निर्माण से करोड़ों का हेरफेर किया जाएगा।

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