प्रदूषण से मौत की राजधानी बन रहा है एनसीआर


बुजुर्ग और बच्चों सहित गर्भवती माताएं आ रही चपेट में 
धूल, धूवें के कारण 112 ग्राम से कम वजन के बच्चे पैदा हो रहे हैं
सीएसई ने अपने वार्षिक रपट में किया खुलासा 
 गुलाबी सर्दियों की शुरुआत जब हो रही थी तभी सर गंगाराम अस्पताल के बाहर कृत्रिम फेफड़ा प्रयोग के लिए लगाया गया। नवंबर 2018 के हल्की सर्दी के दौरान ही यह महज 48 घंटे में ही सफेद से काला हो गया। सिर्फ फेफड़ा ही नहीं, प्रदूषण और जहरीली हवाओं से मानव के कई अंग घायल हो रहे हैं और एनसीआर प्रदूषण से मौत के मामले में दुनियां की राजधानी बनता जा रहा है। जहरीली हवा, वाहनों के शोर, कूंड़े के पहाड़ और लगातार प्रदूषित होते भूजल के कारण प्रदूषण जनित बीमारियां लोगों की जिंदगी लील रही है। दूसरी तरफ प्रदूषण से बचाव के सरकारी प्रयास राजधानी दिल्ली में तो किए गए है लेकिन प्रदूषण के उत्सर्जन करने वाले कारकों में कोई कमी नहीं आई बल्कि वे एनसीआर के दूसरे हिस्से गुडग़ांव, फरीदाबाद, नोयडा सहित बल्लभगढ़ में शिफ्ट हो गए हैं। जिसके कारण राजधानी दिल्ली समेत पूरा एनसीआर एक त्रासदी की ओर आगे बढ़ रहा है। पर्यावरण, प्रदूषण और वन्यजीवों पर शोध करने वाली संस्था सेंटर फॉर साईंस एंड इंवायरमेंट ने अपने वार्षिक प्रतिवेदन में इन बातों का खुलासा किया है। केंद्रीय स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय, विश्व स्वास्थ्य संगठन, नाबार्ड, इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन आफ इंडिया सहित विभिन्न सर्वेक्षण रिर्पोट के आधार पर दावा किया गया है कि  एनसीआर में प्रदूषण से मौत का सिलसिला सबसे अधिक है जिनमें पांच साल से कम उम्र के बच्चे और 55 से 65 उम्र के नागरिकों पर इसका सबसे खतरनाक असर पड़ रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार साल 2018 में बच्चों के प्रीमेच्योर डेथ के 1.24 मिलियन मामले देशभर में सामने आए जिनमें कि 98 फीसदी बच्चे अस्वास्थ्यकर हवा में सांस ले रहे हैं। यदि इन आंकड़ों पर गौर करें तो देशभर में तम्बाकू सेवन से मरने वालों से अधिक तादात पीएम 2.5 से छोटे कणों से मरने वालों की है। दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तरप्रदेश में ही कुल 13 फीसदी लोगों की मौत प्रदूषण के कारण हुई है। लकड़ी से भोजन बनाने वाली महिलाओं पर किए गए अध्ययन के बाद जारी इंवायरमेंटल रिर्पोट 2018 में कहा गया है कि जो गर्भवती महिलाएं लकड़ी के धूंवें और धूलकणों के बीच भोजन बनाती है उनके बच्चे औसत 112 ग्राम से कम वजन के पैदा हो रहे हैं। जबकि एलपीजी पर भोजन बनाने वाली गर्भवती महिलाओं के बच्चे औसत ग्राम के अनूकूल पैदा हो रहे हैं। देशभर के 6,166 शहरों में से सिर्फ 312 शहरों में ही प्रदूषित हवाओं की मॉनिटरिंग करने की प्रणाली विकसित हो पाई है। जिनमें रियल टाईम मानिटरिंग की प्रणाली सिर्फ 57 शहरों में हैं।
मधुमेह के रोगियों के लिए भी प्रदूषण जानलेवा
डब्लूएचओं के द लेन्सेट प्लेनेटरी रिर्पोट में कहा गया है कि 2.5 माइक्रान से कम वजन के पीएम 2.5 स्तर में सांस लेने के कारण मधुमेह के रोगियों की संख्या बढ़ रही है। उल्लेखनीय है कि भारत में दुनियां के आधे मधुमेह के रोगी है जिनकी संख्या करीब 72 मिलियन है। इसके अलावा साल 2016 में अस्थमा के मरीजों की तादात 37.9 मिलियन है जबकि वायु प्रदूषण से सांस के रोगी, फेफड़े का कैंसर, कार्डियोवसकुलर आदि बिमारियां भी तेजी से बढ़ रही हैं। 
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के 6 दिसंबर 2018 की रिर्पोट 
हरियाणा- 2017
प्रदूषण से मौत 28,965
प्रति एक लाख आबादी पर 1395 लोग बीमार
पंजाब- 2017
प्रदूषण से 26594 मौत
प्रति एक लाख आबादी पर 2686 बीमार
दिल्ली-2017
प्रदूषण से 12322 मौत
प्रति एक लाख आबादी पर 2080 बीमार
उत्तरप्रदेश -2017
प्रदूषण से मौत 260028
प्रति एक लाख पर 31717 बीमार
प्रदूषण के अन्य आंकड़े 
-साल 2017 में 12.5 फीसद वायु प्रदूषण से भारत में मौत।
-वायु प्रदूषण से मरने वालों में 51.4 लोग ऐसे थे जिनकी उम्र 70 साल से कम थी।
-76.8 लोग ऐसी हवा में सांस ले रहे हैं जो कि नैशनल एंबिएंट एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड के अनुरुप नहीं है।
-29.2 फीसदी क्रोनिक औब्सट्रक्टिव बिमारी, 29.3 सांस की बीमारी, 23.8 हृदय रोग, 7.5 हृदयाघात, 6.9 मधुमेह, 1.8 फेफड़े का कैंसर, 1.5 कैटरेक्ट बीमारी से पीडि़त है।
वर्जन 
साल दर साल दिल्ली एनसीआर ही नहीं पूरे देश में हवा का स्तर खराब होता जा रहा है। सरकार से लेकर आमजन को इसपर गंभीरता से सोचना होगा। प्रदूषित हवाओं के सबसे अधिक शिकार बुजुर्ग, बच्चे और गर्भवती महिलाएं हो रही है, लोगों में तरह-तरह की समस्याएं सामने आ रही है। इसके समाधान को लेकर गंभीरता से सोचना होगा। -सुनीता नारायणन, सेंटर फॉर साईंस एंड इंवायरमेंट, नई दिल्ली।



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